रांची: राजधानी रांची से सटे सिल्ली और सोनाहातू में बालू माफिया का अवैध कारोबार थमने का नाम नहीं ले रहा है। दिन के उजाले में जेसीबी मशीनों से बालू का उत्खनन और रात के अंधेरे में हाईवा ट्रकों से ढुलाई का सिलसिला बदस्तूर जारी है। चौंकाने वाली बात यह है कि इस अवैध धंधे को प्रशासनिक और राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ है, जिसके चलते माफिया बेखौफ होकर अपना काम कर रहे हैं।
प्रभावी सिंडिकेट का बोलबाला
स्थानीय लोगों का कहना है कि बालू माफिया का यह सिंडिकेट बेहद प्रभावी है। जमशेदपुर के आदित्यपुर निवासी छोटू झा उर्फ विकास और रांची के दीपक महतो इस कारोबार के मुख्य सरगना बताए जा रहे हैं। ये लोग काले रंग की महिंद्रा थार गाड़ियों से क्षेत्र में निगरानी करते हैं। इनके एक स्थानीय एजेंट के जरिए ट्रकों का हिसाब-किताब रखा जाता है। शाम 5 बजे से यह सिंडिकेट सक्रिय हो जाता है। ट्रक ड्राइवरों को दीपक महतो और अमित महतो से टोकन लेना पड़ता है, जिसके लिए पहली ट्रिप के लिए 20,500 रुपये और दूसरी ट्रिप के लिए 8,000 रुपये देने पड़ते हैं। इस राशि में पुलिस और गश्ती दल के लिए भी हिस्सा शामिल होता है, जिसके बाद कोई भी इन गाड़ियों को रोकने की हिम्मत नहीं करता।
ग्रामीणों को धमकी, विरोध की आवाज दबाई
सोनाहातू के जाडेया गांव के ग्रामीणों ने हाल ही में इस अवैध खनन का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाला था, लेकिन इसके बाद उन्हें माफिया की धमकियों का सामना करना पड़ा। स्थानीय लोगों का कहना है कि कोई भी इस सिंडिकेट के खिलाफ बोलने को तैयार नहीं है, क्योंकि ऊपर से लेकर नीचे तक सब कुछ फिक्स है। इसमें दो बड़े नेताओं के नाम पर वसूली होती है, जबकि एक राजनीतिक दल से जुड़ा पदाधिकारी भी इस धंधे में शामिल है।
बालू खनन का पूरा कारोबार एक सुनियोजित ढांचे के तहत चलता है। जेसीबी से बालू लोडिंग का शुल्क 5,000 रुपये है। इसके बाद राजनीतिक दलों को प्रति ट्रक 1,000 से 3,000 रुपये, ऊपरी स्तर के नाम पर 11,500 रुपये, पुलिस पदाधिकारियों के लिए 1,000 रुपये और गश्ती पार्टी के लिए 500 रुपये तय हैं। पर्व-त्योहारों के दौरान अलग से वसूली होती है। ग्रामीण इलाकों के जनप्रतिनिधियों और कुछ स्थानीय पत्रकारों को भी प्रति माह 5,000 से 6,000 रुपये दिए जाते हैं।
कहां-कहां हो रहा अवैध खनन?
सिल्ली और सोनाहातू के कई बालू घाटों पर यह अवैध कारोबार चल रहा है। इनमें झाबरी, सोनाहातू, बिरदीडीह, जाडेया, सोमाडीह, गोमियाडीह, डोमाडीह, गड़ाडीह, भकुआडीह, बांधडीह, श्यामनगर, सुंडी, हजाम, जयनगर, पतराहातु, पोबरा और बसंतपुर जैसे घाट शामिल हैं। राढू, कांची और स्वर्णरेखा नदियों से भी बड़े पैमाने पर बालू निकाला जा रहा है।
खान विभाग की कार्रवाई नाकाफी
खान विभाग का कहना है कि अवैध खनन की शिकायत मिलने पर कार्रवाई की जाती है और पदाधिकारी नियमित रूप से बालू घाटों का निरीक्षण करते हैं। हालांकि, जमीनी हकीकत यह है कि माफिया पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पा रही है। मार्च 2025 में भी रांची प्रशासन ने अवैध खनन के खिलाफ अभियान चलाया था, जिसमें सिल्ली पुलिस स्टेशन में एक वाहन मालिक और ड्राइवर के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था, लेकिन स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आया।
पर्यावरण और ग्रामीणों पर बुरा असर
विशेषज्ञों का कहना है कि अनियंत्रित बालू खनन से पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा है। नदियों का पारिस्थितिकी तंत्र बिगड़ रहा है और ग्रामीणों की आजीविका प्रभावित हो रही है। 2019 में ग्लोबल इनिशिएटिव अगेंस्ट ट्रांसनेशनल ऑर्गेनाइज्ड क्राइम की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में बालू माफिया एक असंगठित अपराध के रूप में तेजी से बढ़ रहा है, जो भ्रष्टाचार और हिंसा को बढ़ावा देता है।
राज्य सरकार और खान विभाग के सख्त निर्देशों के बावजूद बालू माफिया पर लगाम न लग पाना कई सवाल खड़े करता है। क्या प्रशासनिक मिलीभगत के चलते यह अवैध धंधा फल-फूल रहा है? क्या ग्रामीणों की आवाज को दबाने के लिए माफिया को खुली छूट दी जा रही है? इन सवालों का जवाब मिलना अभी बाकी है।