नई दिल्ली:प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में 30 अप्रैल राजनीतिक मामलों की कैबिनेट कमेटी की बैठक में जाति जनगणना कराने का बड़ा फैसला लिया गया। अब केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार अगली जनगणना में जातियों की भी गिनती करेगी।श्रीनगर में जम्मू कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रमुख फारूक अब्दुल्ला ने राष्ट्रीय जनगणना में जाति जनगणना को शामिल करने पर कहा, “लोग लंबे समय से इस बारे में बात कर रहे थे, शुक्र है कि कैबिनेट ने इसे मंजूरी दे दी है. इससे सबसे ज्यादा फायदा पिछड़ों को होगा, उनकी संख्या नहीं गिनी जाती थी. मुझे लगता है कि मुसलमानों की भी गिनती होनी चाहिए, हमें पता होना चाहिए कि हम कितने हैं.”
भारतीय मुसलमान भी जातीय तीन प्रमुख वर्गों और सैकड़ों बिरादरियों में विभाजित हैं. उच्चवर्गीय मुसलमान को अशराफ कहा जाता है, जिसमें सय्यद, शेख, मुगल, पठान,रांगड़ या मुस्लिम राजपूत, त्यागी मुसलमान आते हैं. वहीं, ओबीसी मुस्लिमों को पसमांदा मुस्लिम कहा जाता है, जिनमें कुंजड़े (राईन), जुलाहे (अंसारी), धुनिया (मंसूरी), कसाई (कुरैशी), फ़कीर (अलवी), हज्जाम (सलमानी), मेहतर (हलालखोर), ग्वाला (घोसी), धोबी (हवारी), लोहार-बढ़ई (सैफ़ी), मनिहार (सिद्दीकी), दर्जी (इदरीसी), वन्गुज्जर, इत्यादि. इसके दलित मुस्लिम को अजलाल कहा जाता है.
मुस्लिम समाज में व्याप्त जातिवाद के बारे में डॉ बी. आर. आंबेडकर से लेकर डॉ राममनोहर लोहिया और कांशीराम ने भी खुल कर अपनी राय रखी है. डॉ आंबेडकर लिखते हैं कि …गुलामी भले ही विदा हो गयी हो जाति तो मुसलमानों में कायम है ही. कांशीराम ने कहा कि मुस्लिमों में प्रतिनिधित्व के नाम पर सिर्फ उच्च वर्ग के ही मुस्लिमों की भागीदारी है और ओबीसी मुस्लिम वंचित है. ऐसे में मुसलमानों की बीच जातियों की गणना की मांग उठाकर ओबीसी मुस्लिम को आंकड़े को सबसे सामने लाने की मंशा है.